शिशु कबीर देव द्वारा कंवारी गाय का दूध पीना!

शिशु कबीर देव द्वारा कंवारी गाय का दूध पीना:- कबीर देव को दूध पिलाने की कोशिश नीमा ने की तो परमेश्वर ने मुख बन्द कर लिया। सर्व प्रयत्न करने पर भी नीमा तथा नीरू बालक को दूध पिलाने में असफल रहे। 25 दिन जब बालक के निराहार बीत गए तो माता-पिता अति चिन्तित हो गए। 24 दिन से नीमा तो रो-रो कर विलाप कर रही थी।

सोच रही थी यह बच्चा कुछ भी नहीं खा रहा है। यह मरेगा, मेरे बेटे को किसी की नजर लगी है। 24 दिन से लगातार नजर उतारने की विधि भिन्न-भिन्न स्त्री-पुरूषों द्वारा बताई प्रयोग करके थक गई। कोई लाभ नहीं हुआ। पच्चीसवां दिन उदय हुआ। माता नीमा रात्रि भर जागती रही तथा रोती रही कि पता नहीं यह बच्चा कब मर जाएगा। मैं भी साथ ही फांसी पर लटक जाऊंगी।

मैं इस बच्चे के बिना जीवित नहीं रह सकती। बालक कबीर का शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ था तथा ऐसे लग रहा था जैसे बच्चा प्रतिदिन एक किलो ग्राम (एक सेर) दूध पीता हो। परन्तु नीमा को डर था कि बिना कुछ खाए-पिए यह बालक जीवित रह ही नहीं सकता। यह कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। यह सोचकर फूट-2 कर रो रही थी।

निरु द्वारा स्वामी रामानंद के पास कबीर देव को दूध पिलाने के लिए जाना (शिशु कबीर देव द्वारा कंवारी गाय का दूध पीना)

भगवान शंकर के साथ-साथ निराकार प्रभु की भी उपासना तथा उससे की गई प्रार्थना जब व्यर्थ रही तो अति व्याकुल होकर रोने लगी। 25वें दिन नीरू ने सोचा कि हमने मुसलमान काजी-मुल्लाओं के बताए अनुसार तो सर्व क्रिया कर ली है। परन्तु बच्चा दूध नहीं पी रहा। उस समय स्वामी रामानन्द जी प्रसिद्ध पंडित थे। उनके पास जा कर अपनी समस्या सुनाई कि मुझे जंगल में एक पुत्र प्राप्त हुआ था।

{नीरू को कमल के फूल पर जल में पुत्र प्राप्त हुआ था। परन्तु जिस से भी यह कहता कि कमल के पुष्प पर पुत्रा प्राप्त हुआ था। सर्व अस्वीकार करते थे, कहते थे कि यह कैसे सम्भव हो सकता है? इसी डर से नीरू ने स्वामी रामानन्द जी से कहा कि उद्यान में मुझे एक नवजात शिशु प्राप्त हुआ है।}

वह 25 दिन से कुछ भी नहीं खा-पी रहा है। हे स्वामी कुछ विधि बताओ? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि आप पूर्व जन्म में भी ब्राह्मण थे। उस समय आप से भगवान की भक्ति में कोई त्रुटि हुई थी जिस कारण से आप जुलाहा बने हो। नीरू ने कहा कि हे स्वामी! वह तो जैसा कर्म किया था, उसका फल तो मुझे मिलना ही था।

अब मैं संकट के समय आप के पास आया हूँ। ऐसी कृपा करो बालक दूध पी ले। स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि एक कंवारी गाय (बछिया) ले आना जिसको बैल ने छुआ न हो। उसको अपने बालक के पास खड़ा कर देना, वह कंवारी गाय दूध देगी, उस दूध को बालक पी लेगा। नीरू ने मन ही मन में सोचा कि स्वामी जी ने मेरे साथ मजाक किया है। कंवारी गाय कैसे दूध दे सकती है। वह दुःखी मन से वापिस आकर अपनी झोंपड़ी में बैठकर रोने लगा।

भगवान शिव जी को कबीर देव के के पास आना (शिशु कबीर देव द्वारा कंवारी गाय का दूध पीना)

भगवान शिव, एक साधु का रूप बना कर नीरू की झोपड़ी के सामने आ खड़े हुए तथा नीमा से रोने का कारण जानना चाहा। नीमा रोती रही हिचकियाँ लेती रही। साधु रूप में खड़े भगवान शिव जी के अति आग्रह करने पर नीमा रोती-2 कहने लगी।

हे महात्मा! मेरे दुःख से परिचित होकर आप भी दुःखी हो जाओगे। साधु वेशधारी शिव भगवान बोले हे माई! कहते है अपने मन का दुःख दूसरे के समक्ष कहने से मन हल्का हो जाता है। हो सकता है आप के कष्ट को निवारण करने की विधि भी प्राप्त हो जाए। आँखों में आंसू जिह्वा लड़खड़ाते हुए गहरे साँस लेते हुए नीमा ने बताया हे विप्र जी! हम निःसन्तान थे। पच्चीस दिन पूर्व हम दोनों प्रतिदिन की तरह काशी में लहरतारा तालाब पर स्नान करने गए थे। 

उस दिन ज्येष्ठ मास की पूर्णमासी की सुबह थी। रास्ते में मैंने अपने इष्ट भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति की हृदय से प्रार्थना की थी मेरी पुकार सुनकर दीनदयाल भगवान शंकर जी ने उसी दिन एक बालक लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर हमें दिया। बच्चे को प्राप्त करके हमारे हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा। इस बच्चे ने दूध नहीं पीया।

सर्व प्रयत्न करके हम थक चुके हैं। आज इस बच्चे को पच्चीसवां दिन है कुछ भी आहार नहीं किया है। यह बालक मरेगा। इसके साथ ही मैं आत्महत्या करूंगी। मैं इसकी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रही हूँ। सारी रात्रि बैठ कर तथा रो-2 व्यतीत की है। मैं भगवान शंकर से प्रार्थना कर रही हूँ कि हे भगवन्! इससे अच्छा तो यह बालक न देते। अब इस बच्चे में इतनी ममता हो गई है कि मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।

नीमा के मुख से सर्वकथा सुनकर साधु रूपधारी भगवान शंकर ने कहा। आप का बालक मुझे दिखाइए। नीमा ने बालक को पालने से उठाकर महात्मा जी के समक्ष प्रस्तुत किया। नीमा ने बालक को साधु के चरणों मे डालना चाहा कि बच्चे के जीवन की रक्षा हो सके। बालक पृथ्वी पर न गिर कर ऊपर उठ गया और साधु वेश धारी शिव के सिर के सामान्तर हवा में ठहर गया। 

नीमा ने सोचा कि यह चमत्कार इस साधु ने किया है, मेरे बच्चे को हवा में स्थिर कर दिया। साधु ने अपनी बाहें फैलाकर बच्चे को लेना चाहा। उसी समय बालक स्वयं साधु रूपधारी शिव के हाथों में आ गया। दोनों प्रभुओं की आपस में दृष्टि मिली। भगवान शंकर जी ने शिशु रूप कबीर जी को अपने हाथों में ग्रहण किया तथा मस्तिष्क की रेखाऐं व हस्त रेखाऐं देख कर बोले नीमा! आप के बेटे की लम्बी आयु है यह मरने वाला नहीं है। देख कितना स्वस्थ है।

कमल जैसा चेहरा खिला है। नीमा ने कहा हे महात्मा! बनावटी सांत्वना से मुझे सन्तोष होने वाला नहीं है। बच्चा दूध पीएगा तो मुझे सुख की सांस आएगी। पच्चीस दिन के बालक का रूप धारण किए परमेश्वर कबीर जी ने भगवान शिव जी से कहा हे भगवन्! आप इन्हें कहो एक कंवारी गाय लाऐं। आप उस कंवारी गाय पर अपना आशीर्वाद भरा हस्त रखना, वह दूध देना प्रारम्भ कर देगी।

मैं उस कंवारी गाय का दूध पीऊँगा। वह गाय आजीवन बिना ब्याऐ (अर्थात् कंवारी रह कर ही) दूध दिया करेगी उस दूध से मेरी परवरिश होगी। परमेश्वर कबीर जी तथा भगवान शंकर (शिव) जी की सात बार चर्चा हुई। शिवजी ने नीमा से कहा आप का पति कहाँ है? नीमा ने अपने पति को पुकारा वह भीगी आँखों से उपस्थित हुआ तथा साधु को प्रणाम किया। साधु रूप में शिव ने कहा नीरू! आप एक कंवारी गाय लाओं वह दूध देगी। उस दूध को यह बालक पीएगा। नीरू कंवारी गाय ले आया तथा साथ में कुम्हार के घर से एक ताजा छोटा घड़ा (चार कि.ग्रा. क्षमता का मिट्टी का पात्रा) भी ले आया।

परमेश्वर कबीर जी द्वारा दूध पीना (शिशु कबीर देव द्वारा कंवारी गाय का दूध पीना)

परमेश्वर कबीर जी के आदेशानुसार साधु रूपधारी शिव जी ने उस कंवारी गाय की पीठ पर हाथ मारा जैसे थपकी लगाते हैं। गऊ माता के थन लम्बे-2 हो गए तथा थनों से दूध की धार बह चली। नीरू को पहले ही वह पात्रा थनों के नीचे रखने का आदेश दे रखा था। दूध का पात्र भरते ही थनों से दूध निकलना बन्द हो गया। वह दूध शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने पीया। नीरू नीमा ने साधु रूपधारी भगवान शिव के चरण लिए तथा कहा आप तो साक्षात् भगवान शिव के रूप हो।

आपको भगवान शिव ने ही हमारी पुकार सुनकर भेजा है। हम निर्धन व्यक्ति आपको क्या दक्षिणा दे सकते हैं? हे विप्र! 24 दिनों से हमने कोई कपड़ा भी नहीं बुना है। साधु रूपधारी भगवान शंकर बोले! साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं। जो है भूखा धन का, वह तो साधू नाहीं। यह कह कर विप्र रूपधारी शिवजी वहाँ से चले गए।

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