भक्ति करना क्यों अनिवार्य है?:- सभी संतो-महात्माओं ने भक्ति को बहुत हीं ज्यादा महत्त्व दिया है लेकिन लोग भक्ति के जगह पैसे को ज्यादा महत्त्व देते हैं जिसका एक समय के बाद कोई उपयोग नहीं रह जाता है। भक्ति हम क्यों करें? इस सवाल का जबाब इस पोस्ट में दिया गया है जो की संत रामपाल जी महाराज के कर कमलों द्वारा लिखित है।
कबीर, रामनाम की लूट है, लूटि जा तो लूट।
पीछै फिर पछताएगा, प्राण जहांगे छूट।।
काया तेरी है नहीं, माया कहां से होय।
भक्ति करो भगवान की, जीवन है दिन दोय।।
राम सुमरले सुकर्म करले, कौन जानै कल की, खबर नहीं एक पल की।
कबीर, राम रटत निर्धन भला, टूटी घर की छान।
वो सुंदर महल किस काम के, जहां भक्ति नहीं भगवान।।
परमेश्वर ने मानव को अन्य प्राणियों से भिन्न शरीर दिया है, विशेष बुद्धि दी है और विशेष आहार भी दिया है। इसलिए इसका कार्य भी भिन्न है। आत्मा के ऊपर जो स्थूल शरीर है। इसको आध्यात्मिक भाषा में वस्त्रा कहते हैं। जैसे श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 22 में कहा है कि जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र ग्रहण कर लेता है। ऐसे ही जीवात्मा एक शरीर छोड़कर दूसरे प्राणियों का या उसी प्राणी का शरीर धारण कर लेती है।
श्रीमद्भगवत गीता अनुसार ही हम विचार करें कि जिन प्राणियों को मानव शरीर प्राप्त है, (यह एक पोशाक है) वे सर्व इस पोशाक (मानव शरीर) वाले विद्यार्थी हैं। विद्यार्थी यदि अपना कत्र्तव्य भूलकर अन्य खेल-कूद या सिनेमा देखने में या शराब, तम्बाकू आदि का सेवन करके अपना विद्यार्थी जीवन नष्ट करता है तो वह बाद में आजीवन दुःखी रहता है।
एक व्यक्ति एक सड़क पर मिट्टी डालने की मजदूरी कर रहा था। उसकी पत्नी भी वहीं मजदूरी कर रही थी। उनके बच्चे वहीं वृ़क्ष के नीचे जमीन पर खेल रहे थे। सड़क महकमें का बड़ा अधिकारी (एक्सीयन) सड़क के कार्य का निरीक्षण करने के लिए सरकारी गाड़ी में बैठकर आया। जब वह चला गया तब वह मजदूर कहने लगा कि यह ग्म्छ मेरा सहपाठी (ब्संेेमिससवू) था। मेरी किस्मत फूट गई, मैं नहीं पढ़ा।
घर से स्कूल के लिए जाता था। स्कूल में थैला रखकर बाहर एक अन्य साथी के साथ वृक्षों पर चढ़-उतर कर खेलता रहता था। धुम्रपान का भी आदी हो गया। बार-बार परीक्षा में फेल हो जाने के कारण घरवालों ने विद्यालय छुड़ा दिया। उसके पश्चात् विवाह हुआ और मजदूरी कर रहा हूँ। मेरे बच्चे वृ़क्ष के नीचे गर्मी में जमीन पर पड़े हैं। इस अधिकारी XEN (Executive Engineer) के बच्चे शहर में वातानुकूल कक्षा में रहते हैं।
यह स्वयं सरकारी गाड़ी में चलता है। यदि मैं पढ़ लेता तो आज मैं भी इसी प्रकार सुखी होता। अब मुझे वो गए दिन बहुत सता रहे हैं। कई बार तो रोता हूँ कि मैंने वह समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए था। पाठकों से निवेदन है जैसे वह व्यक्ति पछता रहा है कि यदि पढ़ लेता तो मैं भी, मेरे बच्चे भी सुखी होते। इसी प्रकार उन मानव शरीर रूपी पोषाक वाले प्राणियों को गधे, कुत्ते बनकर पछताना पड़ेगा। फिर कुछ नहीं बनेगा।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि:-
आच्छे दिन पाच्छै गए, गुरू से किया ना हेत।
अब पछतावा क्या करै, जब चिड़िया चुग गई खेत।।
भावार्थ:- जो व्यक्ति समय रहते परमात्मा की भक्ति नहीं करते वे ऐसे पछताऐंगे। जैसे किसान अपनी फसल की रखवाली न करके बाजरे की फसल को चिड़िया आदि पक्षियों द्वारा नष्ट करने के बाद पछताता है। इसी प्रकार गुरु से नाम लेकर भक्ति न करने वाला पछताता है।
परमेश्वर कबीर जी के परम भक्त गरीबदास जी ने भी कहा है कि:-
यह संसार समझदा नाहीं, कहंदा शाम दोपहरे नूं।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।।
भावार्थ:- जब तक मानव सत्संग नहीं सुनता, तब तक कष्ट पर कष्ट उठाता रहता है। उसको पता नहीं चलता कि कष्ट किस कारण से हो रहा है और हल्के कष्ट को ही सुख मानकर संतोष कर लेता है।
उदाहरण के लिएः- एक व्यक्ति के तीन पुत्र थे। कुछ दिन उपरान्त एक की मृत्यु हो गई। वह बहुत व्याकुल था, न खाना खा रहा था, केवल रो रहा था। नगर के व्यक्ति शोक व्यक्त करने के लिए आ रहे थे। उनमें एक ऐसा व्यक्ति था जिसका एक ही पुत्र था, वही परमात्मा को प्यारा हो चुका था। सांत्वना देने वालों ने बताया कि भाई देख इस भाई का एक ही पुत्र था। वह भी मर गया। इसने भी संतोष कर लिया, आप भी कुछ हिम्मत करो।
यह सुनकर उस व्यक्ति को कुछ राहत मिली तथा मन में विचार किया कि हे परमात्मा! इससे तो मैं ही ठीक हूँ। मेरे दो पुत्र तो जीवित हैं। तब उसने कुछ खाना खाया तथा सामान्य हुआ। विचार करने की बात है कि अधिक दुःखी को देखकर हम अपने कम दुःख को सुख मान लेते हैं। वह सुख नहीं दुःख ही है। क्या उस व्यक्ति का पुत्र जीवित हो गया? नहीं। केवल अपने से अधिक दुःखी को देखकर राहत मान ली।
दुःख ज्यों का त्यों ही है। इसलिए सन्त गरीबदास जी ने कहा है कि यह संसार सत्संग को न समझ कर दोपहर को ज्येष्ठ मास की गर्मी (जो दिन के 12 बजे के आस-पास होती हैं उसी को) शाम (सूर्य अस्त होने के समय को शाम कहते हैं। उस समय गर्मी कम हो जाती है, ठण्डक होती है।) कह रहा है अर्थात् दोपहर की गर्मी शाम कहने का तात्पर्य यह है कि गलती से दुःख को ही सुख मान रहा है।
यदि भक्ति नहीं करोगे तो अगले जन्म में कुत्ते के शरीर को प्राप्त करके रोया करोगे। यह मानव जीवन का वक्त (समय) हाथ से छूट जाने के पश्चात् इस पहरे (मानव जन्म के समय को) को याद करके रोया करोगे। जैसे रात्रि के समय कुत्ते ऊपर आकाश की और मुंह करके रोते हैं। उनको मानव जीवन का समय (पहर) याद आता है, परन्तु अब क्या बने। यह मनुष्य शरीर रहते-रहते ही कुछ करना था।
ठीक इसी प्रकार मानव शरीर धारी (विद्यार्थी) भक्ति रूपी (पढ़ाई) न करके कोठी-बंगले बनाने, शराब, तम्बाकू का सेवन करने तथा विवाह आदि में फोकट शान बनाने में अपना जीवन नष्ट करता है तो वह मृत्यु उपरांत बहुत कष्ट उठाता है। पुनः मानव शरीर (स्त्री तथा पुरूष) शीघ्र प्राप्त नहीं होता।
सूक्ष्म वेद में लिखा है:-
फिर पीछे तू पशूवा कीजै, दीजै बैल बनाय।
चार पहर जंगल में डोलै, तो नहीं उदर भराय।।
सिर पर सींग दिए मन बोरे, दुम से मच्छर उडाय।
कांधै जूवा, जोतै कूवा, जौवों का भुस खाय।।
फिर पीछै तू खर (गधा) कीजैगा, कुरड़ी चरने जाय।
टूटी कमर पजावै चढ़ै, तेरा कागा मांस गिलाय।।
भावार्थ:- जो भक्ति नहीं करता, वह पशु के शरीरों को प्राप्त करता है। बैल के शरीर को प्राप्त करके कितना कष्ट उठाता है। जंगल में हल चला रहा होगा, भूख लगी होगी। पास में भोजन (हरी-हरी घास) होगा परंतु खा नहीं सकेगा क्योंकि हाली अपना कार्य पूरा करवाकर ही शाम को घर लाकर ही चारा खिलाएगा। इसी तरह प्यास लगी होगी। बोलकर नहीं बता सकेगा। समय पर सुबह, दोपहर तथा शाम को ही पानी पीने को मिलेगा।
मानुष शरीर में जब चाहे भोजन खा लेते हैं। प्यास लगते ही जल पी लेते हैं। गर्मी तथा मच्छरों से बचने के लिए पंखे, मच्छरदानी आदि का प्रयोग कर लेते हैं। परंतु भक्ति न करके बैल बन जाने के पश्चात् सिर पर सींग तथा एक दुम (पूंछ) होगी। उसका पंखा बनाओ, चाहे ऑल आऊट बनाओ, यह दुर्गति होगी। इसके पश्चात् गधे का शरीर मिलेगा। उसमें कितने कष्ट उठाएगा।
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