काल ब्रह्म के अवतारों की जानकारी।

गीता अध्याय 4 का श्लोक 7

यदा, यदा, हि, धर्मस्य, ग्लानिः, भवति, भारत, अभ्युत्थानम्, अधर्मस्य, तदा, आत्मानम्, सजामि, अहम्।।

यदा, यदा, हि, धर्मस्य, ग्लानिः, भवति, भारत,
अभ्युत्थानम्, अधर्मस्य, तदा, आत्मानम्, सजामि, अहम्।।7।।

अनुवाद: (भारत) हे भारत! (यदा,यदा) जब-जब (धर्मस्य) धर्म की (ग्लानिः) हानि और (अधर्मस्य) अधर्म की (अभ्युत्थानम्) वृद्धि (भवति) होती है (तदा) तब-तब (हि) ही (अहम्) मैं (आत्मानम्) अपना अंश अवतार (सजामि) रचता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ। (7)

जैसे श्रीमद्भगवत् गीता अध्याय 4 श्लोक 7 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जब-जब धर्म में घणा उत्पन्न होती है। धर्म की हानि होती है तथा अधर्म की वृद्धि होती है तो मैं (काल = ब्रह्म = क्षर पुरूष) अपने अंश अवतार सृजन करता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ।

जैसे श्री रामचन्द्र जी तथा श्री कष्ण चन्द्र जी को काल ब्रह्म ने ही पथ्वी पर उत्पन्न किया था। जो स्वयं श्री विष्णु जी ही माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त 8 अवतार और कहे गये हैं। जो श्री विष्णु जी स्वयं नहीं आते अपितु अपने लोक से अपने कपा पात्रा पवित्रा आत्मा को भेजते हैं। वे भी अवतार कहलाते हैं। कहीं-2 पर 25 अवतारों का भी उल्लेख पुराणों में आता है। काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) के भेजे हुए अवतार पथ्वी पर बढ़े अधर्म का नाश कत्लेआम अर्थात् संहार करके करते हैं।

उदाहरण के रूप में:- श्री रामचंद्र जी तथा श्री कष्णचंद्र जी, श्री परशुराम जी तथा श्री निःकलंक जी (जो अभी आना शेष है, जो कलयुग के अन्त में आएगा)। ये सर्व अवतार घोर संहार करके ही अधर्म का नाश करते हैं। अधर्मियों को मारकर शांति स्थापित करने की चेष्टा करते हैं। परन्तु शांन्ति की अपेक्षा अशांति ही बढ़ती है। जैसे श्री रामचंद्र जी ने रावण को मारने के लिए युद्ध किया। युद्ध में करोड़ों पुरूष मारे गए। जिन में धर्मी तथा अधर्मी दोनों ही मारे गए। फिर उनकी पत्नियाँ तथा छोटे-बड़े बच्चे शेष रहे उनका जीवन नरक बन गया। विधवाओं को अन्य व्यक्तियों ने अपनी हवस का शिकार बनाया। निर्वाह की समस्या उत्पन्न हुई आदि-2 अनेकों अशांति के कारण खड़े हो गए। यही विधि श्री कष्ण जी ने अपनाई थी, यही विधि श्री परशुराम जी ने अपनाई थी। इसी विधि से दशवां अवतार काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) द्वारा उत्पन्न किया जाएगा। उसका नाम ‘‘निःकलंक’’ होगा। वह कलयुग के अन्तिम समय में उत्पन्न होगा। जो राजा हरिशचन्द्र वाली आत्मा होगी। संभल नगर में श्री विष्णु दत्त शर्मा के घर में जन्म लेगा। उस समय सर्व मानव अत्याचारी – अन्यायी हो जाऐंगे। उन सर्व को मारेगा। उस समय जिन-2 मनुष्यों में परमात्मा का डर होगा। कुछ सदाचारी होंगे उनको छोड़ जाएगा अन्य सर्व को मार डालेगा। यह विधि है ब्रह्म (काल-क्षर पुरूष) के अवतारों की अधर्म का नाश करने तथा शांति स्थापना करने की।

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